वेद (VEDAS) शब्द संस्कृत के विद धातु से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ ज्ञान है। इसीलिए वेद को ज्ञान का ग्रंथ कहा गया है। वेदों को प्राचीन ज्ञान विज्ञान का अथाह सागर माना गया है। भारत के सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ को वेद है। वेद के रचयिता (संकलनकर्ता ) वेद व्यास जी को माना जाता है। वेद व्यास जी का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन वेदव्यास था।
वेद में वर्णित ज्ञान मानव मात्र के कल्याण हेतु परमात्मा द्वारा प्रदत एक अनुपम उपहार है। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद और सबसे बाद का वेद अथर्ववेद कहलाता है। इसमें आप जानेंगे वेद क्या है। वेद कितने प्रकार के हैं। वेदों की रचना कब हुई और वेद का दूसरा नाम क्या है। चारों वेदों में क्या है?
वेद ही हैं सत्य सनातन
वेदों का प्रादुर्भाव, सृष्टि के सृजन काल से ही माना जाता है। कहते हैं, कि प्रलय के वक्त वे परमात्मा में व्याप्त हो जाते है। जो बाद में सृष्टि के समय परमात्मा द्वारा पुनः प्रकट कर दिए जाते है। इसीलिए वेदों को सृष्टि का प्रथम व मूल ग्रंथ माना गया है।
वेदों का संक्षिप्त परिचय
वेद को दुनियाँ का सबसे प्राचीन ग्रंथों में प्रथम माना जाता है। वेदों की रचना काल की बात की जाय, तो इसे 1700 से 1100 ईसा पूर्व माना जाता है। यधपि विद्वानों में इसके रचना काल को लेकर मतांतर है।
वेद का दूसरा नाम ‘श्रुति‘ है, जिसका अर्थ है सुनना। क्योंकि वेद सृष्टि के सृजनहार ब्रह्म जी के द्वारा ऋषि, मुनियों को सुनाए गए ज्ञान पर आधारित है। बाद में इसे लिपिबद्ध कराया गया। वेद ही समस्त धर्मों का मूल है।
वेदों की उत्पत्ति ब्रह्माजी के चारों मुख से मानी जाती है। वेद (Ved) मूल रूप में संस्कृत भाषा में उपलब्ध हैं। मान्यता है कि वेदों के ऋचाओं को ब्रह्मा जी द्वारा समाधि में लीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त हुआ। कहते हैं कि ब्रह्मा ने सर्वप्रथम चार ऋषियों अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य को इसका ज्ञान दिया।
चारों वेदों के नाम
4 वेदों के नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद हैं। इन चारों वेद को संहिता के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम तीन वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद ) को अग्नि, वायु और आदित्य से जोड़ कर देखा जाता है। जबकि अथर्ववेद को अंगिरा से उत्पन्न हुआ मानते है। सबसे बड़ा वेद ऋग्वेद है, जिसमें में 10 मंडल और 1028 सूक्त सम्मिलित हैं।
वेदों के संकलनकर्ता है कृष्णद्वैपायन वेद व्यास जी
माना जाता है, कि महर्षि वेद व्यास जी ने घूम-घूम कर कंठस्थ वेद (Ved) ऋचाओं को एकत्र करने की योजना को कार्य रूप दिया। उन संकलन को चार वेदों के रूप में बांटकर लिपिवद्ध कराया गया।
वेदों का व्यास अर्थात वर्गीकरण करने के कारण ही कृष्णद्वैपायन का नाम वेदव्यास पड़ा। इस कारण कहा जाता है,कि चारों वेदों की रचना वेदव्यास जी ने की।
वेद, यूनेस्को के सूची में हैं शामिल
ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को यूनेस्को ने सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में सम्मिलित किया है। वेदों के इस पांडुलिपि के बारे में मान्यता है कि यह सबसे पौराणिक लिखित दस्तावेजों में से है।
इसके साथ ही वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ को पुणे के ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में सुरक्षित रखा गया है।
चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है –
वेद हमें ब्रह्म, ब्रह्मांड, ज्योतिष, रसायन, औषधि, मंत्र, रीति-रिवाज,यज्ञ आदि के अनंत राज से अवगत कराते हैं। इसके साथ वेद में गणित,प्रकृति,धर्म,इतिहास से सबंधित ज्ञान मौजूद है। वेद में मानव जीवन से जुड़ी हर समस्या का समाधान निहित है।
ऋगवेद
- ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संकलन को ही ऋग्वेद कहा गया है।
- वेद की ऋचाओं का पाठ करने वाला ऋषि होत्री कहा जाता है।
- वेदों में सबसे पहले ऋग्वेद का संकलन किया गया। इसीलिए ऋग्वेद को सबसे पहला वेद माना गया है।
- यह वेद पद्यात्मक है अर्थात काव्य रूप में बहुआयामी सूक्तों,ऋचाओं तथा स्तोत्र-मंत्रों का संकलन हैं।
- सूक्त, वेद मंत्रों के समूह को कहा जाता है। इसमें 10 मंडल के अंतर्गत कुल 1028 सूक्त हैं।
- ऋग्वेद में 10,462 मंत्र(ऋचाएं) हैं। यद्यपि कुल मंत्रों की संख्या को लेकर विद्वानों में मतांतर है।
- इस वेद में भगवान इन्द्र के लिए 250 और अग्नि देव के लिए 200 ऋचाओं का वर्णन है।
- इतने सूक्तों और मंत्रों के साथ यह वेद एक वृहद ग्रंथ है।
- इसी वेद के अंतर्गत वर्तमान में लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी का भी उल्लेख है।
- ऋग्वेद के 9 वें मण्डल में सोम देवता का जिक्र है।
ऋग्वेद में प्रसिद्ध गायत्री मंत्र व मृत्युंजय मन्त्र का वर्णन
ऋग्वेद की ऋचाओं में स्तोत्र-मंत्रों के द्वारा देवताओं की स्तुतियां यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र आदि का वर्णन है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक मृत्युंजय मन्त्र का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद के तीसरे मंडल में भगवान भास्कर को समर्पित विश्व प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का वर्णन किया गया है।
औषधि और विभिन चिकित्सा का वर्णन
ऋग्वेद के दसवें मंडल में विभिन्न औषधि वर्णन मिलता है। इसमें 125 के करीब औषधियों की संख्या बताई गई है, जिसका 107 स्थानों पर पाये जाने का जिक्र भी किया गया है। च्यवनप्राश के सेवन से वृद्ध च्यवनऋषि को फिर से युवा करने की कथा इसी वेद में ही वर्णित है।
इसमें जल चिकित्सा, सौर चिकित्सा, वायु चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन के द्वारा चिकित्सा का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 90 सूक्त में सृष्टी की रचना से संबंधित वर्णन उपलव्ध है।
यजुर्वेद
ऋग्वेद के बाद यजुर्वेद को दूसरा वेद माना जाता है। यह वेद मुख्य रूप से गद्यात्मक है। इस वेद में अधिकांशतः यज्ञों और हवनों के नियम और विधान वर्णित हैं। इस वेद में बलिदान विधि का भी वर्णन है। अतः इस वेद को कर्मकाण्ड प्रधान कहा जा सकता है।
यजुर्वेद में यज्ञ, हवनों के नियम तथा उनसे संबंधित मंत्र संकलन है। यज्ञीय कर्मकाण्डों के अधिकांश मन्त्र इसी वेद से लिए गये है। यजुर्वेद की कृष्ण और शुक्ल दो शाखाएं हैं। अश्वमेघ यज्ञ सहित अन्य यज्ञ का वर्णन भी यजुर्वेद में उपलव्ध है। यजुर्वेद और सामवेद में किसी विशिष्ट एतिहासिक घटना का जिक्र नहीं मिलता।
सामवेद
साम का अर्थ रूपांतरण और गायन से है। अन्य सभी वेदों की तरह सामवेद के रचयिता व्यासजी है। सामवेद मुख्यतः ऋग्वेद का ही एक विशेष वर्गीकृत अंश जैसा है। इसमें 1824 मंत्र वर्णित हैं। इसमें 75 मंत्रों को छोड़कर बाकी शेष सभी मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।
इसमें मुख्य रूप से 3 शाखाएं है, जिसमें मुख्य रूप से यज्ञों के अवसर पर उच्चारण किए जाने वाले 75 ऋचाओं (मंत्रों) का वर्णन है। सामवेद के श्लोक में ऋग्वेद की ऋचाओं का गीतात्मक यानी गीत के रूप में वर्णन है। मंत्रों को पुरोहितों द्वारा यज्ञ में गायन के लिए संगीतमय मंत्र है।
सामवेद में सविता, इंद्र और अग्नि के बारे में भी वर्णन मिलता है। सामवेद एक ऐसा वेद है जो गद्य और पद्य दोनों में लिखा हुआ है।
अथर्ववेद
अर्थ का मतलव काम या मोक्ष से है। इस वेद का संकलन सब वेदों के बाद माना गया है।अथर्ववेद के कुल 20 अध्यायों में 5687 मंत्र है। अथर्ववेद सभी संशयों के निवृति का वेद कहलाता है।
इसमें तंत्र-मंत्र, काम-क्रियाओं का वर्णन, रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार आदि का उल्लेख है।
वेदों के उपवेद-
- ऋग्वेद का उपवेद – आयुर्वेद, जिसमें चरक, सुश्रुत आदि का वर्णन है।
- यजुर्वेद का उपवेद – धनुर्वेद, इसमें धनुविद्या से संबंधित ज्ञान है।
- सामवेद का उपवेद – गंधर्ववेद, इसमें कला,संगीत व गायन इत्यादि का जिक्र है।
- अथर्ववेद का उपवेद – स्थापत्यवेद या शिल्पवेद है।
(नोट: यह लेख एकत्र की गई जानकारियों के आधार पर है, यदि इसमे कोई त्रुटि है,तो हम उसके लिए क्षमाप्रार्थी है और उसके सुधार के लिए आपके मार्गदर्शन का स्वागत करते है।)
यदि आपको हमारा लेख पसंद आया तो कृपया इसको आगे शेयर करें और कमेन्ट कर हमारे साथ अपने विचार अवश्य प्रस्तुत करे, ताकि हम भविष्य में इसप्रकार के और लेख आपके सम्मुख प्रस्तुत कर सके।
More Stories
धर्म एवं संस्कृति: चिकन पॉक्स को हिंदू धर्म में क्यों पूजा जाता है माता के रूप में? जानिए वजह
Char Dham Yatra 2023: 22 अप्रैल को गंगोत्री,यमुनोत्री एवं 26 को केदारनाथ धाम के खुलेंगे कपाट, विश्व भर के भक्त करेंगे यात्रा
Dehradun: परेड ग्राउंड में गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में सुरक्षा चूक, मंच तक पहुचें सैकड़ों लोग